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कांतारा के तीन देवता कौन थे? जानिए वो छिपा रहस्य जिससे फिल्म बनी जादुई!

पंजुरली देव कथा – कांतारा मूवी के रहस्य से जुड़ी लोक-देवता की कहानी

यह कथा कांतारा मूवी में दिखाई गई तीन दैवी शक्तियों की है — पंजुरली देव, गुलिक देव और शिव देव — पर वास्तव में यह सिर्फ एक फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि दक्षिण भारत की गहराई में छिपी एक प्राचीन रहस्यमयी परंपरा है, जिसे पीढ़ियों से लोग अपनी आस्था और अनुभवों से जोड़कर मानते आ रहे हैं।

कांतारा के देवताओं की रहस्यमयी कथा

 1. पंजुरली देव – वराह का वरदान

कहा जाता है, बहुत प्राचीन समय में वराह देवता (जो भगवान विष्णु का तीसरा अवतार माने जाते हैं) के पांच पुत्र हुए थे। पर नियति को कुछ और मंजूर था।
उनमें से एक बालक किसी कारणवश पीछे छूट गया — अकेला, भूखा, प्यासा और मृत्यु के करीब। तभी वहां से माता पार्वती गुजरीं। उन्होंने उस तड़पते बालक को देखा, और ममता उमड़ आई। वे उसे उठाकर कैलाश पर्वत ले आईं और अपने पुत्र की तरह पालन-पोषण किया।

सालों बाद वह बालक बड़ा होकर एक भव्य, पर भयानक वराह (सूअर रूप) में परिवर्तित हो गया। उसकी शक्ति अपार थी, पर शरीर में ऐसी भयंकर खुजली और पीड़ा होती थी कि वह खुद को मिटाने के लिए धरती की फसलों में लोटने लगा। फसलें नष्ट हो गईं, लोग भूख से मरने लगे और धरती कराह उठी।

यह देखकर भगवान शिव ने निर्णय लिया कि अब इस विनाश को रोकना होगा। उन्होंने उस वराह का वध करने का संकल्प लिया।
पर जब माता पार्वती को पता चला कि उनका पुत्र मारा जाएगा, वे शिव के चरणों में गिर पड़ीं — “प्रभु, उसका वध मत कीजिए।”
शिव ने कहा, “वध नहीं करूंगा, पर वह अब कैलाश नहीं लौट सकेगा। वह धरती पर रहेगा, मानवता और फसलों की रक्षा करेगा।”

तभी से वह वराह “पंजुरली देव” कहलाए — जो धरती, खेती और जीवन के रक्षक देवता हैं।
आज भी कर्नाटक और तटीय क्षेत्रों में इन्हें “दैव कोला” के रूप में पूजा जाता है, जहां साधक (भूत कोला कलाकार) देवत्व का आवाहन कर भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।

 2. गुलिक देव – राख से उत्पन्न रक्षक

कहते हैं, एक बार भगवान शिव के गण एक भव्य यज्ञ कर रहे थे। उस यज्ञ की राख से एक रहस्यमयी पत्थर उत्पन्न हुआ।
शिव ने उस पत्थर को आशीर्वाद दिया और धरती पर फेंक दिया।
वह पत्थर धरती में गिरते ही जीवंत हो उठा, और उसी से जन्म हुआ गुलिक देव का।

गुलिक देव जन्म से ही अग्नि समान उग्र थे। उनका शरीर शक्ति से भरा था, पर भीतर एक अतृप्त भूख जल रही थी।
वे जो भी देखते, निगल लेते — जानवरों, पशुओं, यहां तक कि हाथियों और घोड़ों का रक्त भी पी जाते थे।

यह देखकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और बोले —
“हे गुलिक, अब मेरी यह छोटी उंगली चूसो।”
जैसे ही गुलिक देव ने उंगली चूसी, उनकी भूख शांत हो गई। विष्णु ने उन्हें आशीर्वाद दिया —
“अब तू धरती पर रहकर मनुष्यों और उनके धर्म की रक्षा करेगा।”

तब से गुलिक देव बने धरती के योद्धा रक्षक, जो अंधकार और दुष्ट शक्तियों को नष्ट करते हैं।
वे न्याय और दंड के प्रतीक हैं — जो अधर्म के विरुद्ध खड़े रहते हैं।

 3. गुलिक और पंजुरली का संघर्ष

समय के साथ, दोनों की शक्तियां बढ़ती गईं।
पंजुरली देव को धरती की रक्षा का गर्व था, तो गुलिक देव को अपने तेज और पराक्रम का अभिमान।
उनके बीच अहंकार की अग्नि जल उठी और एक दिन भयानक युद्ध हुआ जिसने आकाश तक को हिला दिया।

धरती कांप उठी, समुद्र मथ गया, तब माता पार्वती पुनः प्रकट हुईं।
उन्होंने दोनों को शांत किया और कहा —
“तुम दोनों भाई हो। धरती तुम्हारी माता है।
तुम्हारा कर्तव्य लड़ना नहीं, उसकी रक्षा करना है।”

उस दिन से दोनों देवताओं ने प्रतिज्ञा ली —
वे साथ मिलकर मानवता, फसल, और धरती की रक्षा करेंगे।

और तब से आज तक, जब भी “दैव कोला” में पंजुरली और गुलिक देव का आवाहन होता है,
यह माना जाता है कि दोनों देव साथ उतरते हैं और अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
ऐसे घरों में जहां ये देव पूजे जाते हैं —
ना दुष्ट शक्तियां प्रवेश करती हैं, ना अकाल पड़ता है, ना फसलों का नाश होता है।

कांतारा मूवी और इन देवताओं का रहस्य

कांतारा” फिल्म ने इन दैव परंपराओं को नाटकीय रूप में दिखाया है, पर असल में यह कहानी दक्षिण भारत की लोक आस्था से जुड़ी है।
कर्नाटक, कासरगोड, और तटीय क्षेत्रों में आज भी यह परंपरा जीवित है।
लोग मानते हैं कि जब “दैव कोला” का नृत्य होता है, तो देवता स्वयं उस व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करते हैं और गांव, खेती, व परिवार की रक्षा का आशीर्वाद देते हैं।

यह परंपरा सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि धरती, प्रकृति और आत्मा के बीच का रिश्ता है।
कांतारा में दिखाए गए देवता — पंजुरली, गुलिक और शिव — इसी रहस्यमयी और दिव्य ऊर्जा का प्रतीक हैं।

यह सिर्फ कथा नहीं, बल्कि एक जीवित रहस्य है — जहां देव, धरती और मानव एक-दूसरे से जुड़े हैं।
जो इस आस्था को मानता है, उसके जीवन में प्रकृति और शक्ति का संतुलन हमेशा बना रहता है।

क्या आप जानते हैं?
कर्नाटक के कुछ हिस्सों में यह भी मान्यता है कि जब कोई व्यक्ति छल करता है या प्रकृति का अपमान करता है,
तो पंजुरली देव उसके स्वप्न में आकर चेतावनी देते हैं।
और अगर कोई व्यक्ति अपने वचन से पीछे हटे — तो गुलिक देव उसे न्याय दिलाते हैं।

कांतारा की कथा हमें सिखाती है कि प्रकृति से जुड़ना ही सच्ची भक्ति है, और देवता हमारे भीतर की शक्ति हैं, जो हर जीव के प्रति प्रेम और न्याय की भावना जगाते हैं।


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