Udaipur Files Movie Review: Kanhaiya Lal Murder पर बनी फिल्म | सच या Agenda?
August 09, 2025
उदयपुर फाइल्स: एक सच्ची और दिल दहला देने वाली फिल्म | Udaipur Files Movie Review - Kanhaiya Lal
उदयपुर फाइल्स मूवी रिव्यू: क्या एक सेंसिटिव मुद्दे पर इतनी हल्की फिल्म बनानी चाहिए थी?
61 कट और एक बार पोस्टपोन होने के बाद आखिरकार "उदयपुर फाइल्स: कन्हैया लाल टेलर मर्डर" रिलीज हो चुकी है।
यह फिल्म आपको सोचने पर मजबूर कर देती है — क्या धर्म के नाम पर कोई इतना अंधा हो सकता है कि किसी मासूम की जान ले ले?
“नबी की एक ही सजा, सर तन से जुदा” – फिल्म का यह सन्देश ही इस पूरी कहानी की मूल आत्मा है।
फिल्म को कितने स्टार मिलने चाहिए?
इस बार फैसला मैं आपके ऊपर छोड़ता हूं, क्योंकि यह कोई आम फिल्म नहीं है जिसका सामान्य रिव्यू किया जा सके।
रिलीज के बावजूद, फिल्म को थिएटर्स में सिर्फ एक-दो शो ही मिले हैं। मैं जिस शो में गया, उसमें लगभग 40-50 लोग ही मौजूद थे।
कन्हैया लाल मर्डर केस: असली मुद्दा क्या था?
साल 2022, एक टीवी डिबेट में दो धर्मों के ठेकेदार आपस में उलझते हैं। दोनों तरफ से अपशब्द, सोशल मीडिया पर आग और भड़कती भीड़।
एक गरीब दर्जी — कन्हैया लाल, जिसने बस एक पोस्ट को शेयर किया,
उसे दिनदहाड़े गौस मोहम्मद और रियाज़ अख्तारी नाम के दो युवकों ने बेरहमी से मार डाला।
उस हत्या का वीडियो भी बनाया और इसे धर्म के नाम पर जस्टिफाई किया।
3 साल बीत गए, केस अब भी कोर्ट में चल रहा है।
फिल्म की शुरुआत और कहानी का फैलाव
फिल्म की शुरुआत दिल्ली से होती है —
जहां कुछ मुस्लिम युवक रामनवमी की शोभायात्रा पर मीट फेंकते हैं,
पुलिस उन्हें पीटती है, एमएलए बीच में आता है, और पुलिस जवाब देती है:
“दिल्ली की पुलिस तुम्हारी सरकार नहीं चलाती।”
यह सिर्फ शुरुआत है। फिर फिल्म काशी, पाकिस्तान, इंटेलिजेंस ब्यूरो, हाफिज सईद और खाटूश्याम जी के मंदिर तक पहुंचती है। यानी फिल्म इतने दिशाओं में बिखर जाती है कि डायरेक्टर की मंशा ही समझ नहीं आती।
क्या "उदयपुर फाइल्स" एक अच्छी फिल्म है?
साफ जवाब: बहुत बुरी।
जिस उम्मीद के साथ मैंने ट्रेलर देखा था — कुछ वैसा ही जैसा कश्मीर फाइल्स या केरला स्टोरी से होता है —
वो फिल्म पूरी तरह फेल कर देती है।
उदयपुर की असली कहानी सिर्फ 30 मिनट में समेट दी गई है,
बाकी फिल्म में पिछले 3-4 साल की हर हिन्दू-मुस्लिम खबर का कोलाज दिखता है।
एक्टिंग और किरदारों की बात करें तो...
विजय राज और उनकी पत्नी ही कुछ हद तक एक्टिंग कर गए हैं।
रजनीश दुग्गल (IB हेड) का बेस्ट डायलॉग: “Oh Shit.”
प्रिति सिंह ज्ञानी, जो टीवी एंकर बनी हैं, और जिनका चैनल उन्हें हटाकर अंजना और त्रा को भेज देता है (Yes, that’s their names).
बाकी सारे कैरेक्टर्स ऐसे लगते हैं जैसे किसी स्किट शो में जबरदस्ती फिट कर दिए गए हों।
किसी भी कहानी की कोई क्लोजिंग नहीं है। सब अधूरी।
61 कट्स या डायरेक्शन की गड़बड़ी?
ये कहना मुश्किल है कि ये हालात CBFC के 61 कट्स की वजह से हुए हैं या डायरेक्टर भरत श्रीनेत की प्लानिंग ही कमजोर थी।
ना नूपुर शर्मा की सही साइड ले पाए,
ना पाकिस्तान को रोक पाए,
ना कन्हैया लाल की हत्या को जज्बाती रूप दे पाए।
बस एक ही काम कर पाए — इस मुद्दे पर अपनी रोटी सेकना।
पाकिस्तान और हाफिज सईद का ‘अनोखा’ चित्रण
एक सीन में हाफिज सईद को गे दिखाया गया है — चिकने लड़कों के साथ।
किसी भी फिल्म में इतनी बोल्ड व्यंग्यता कम ही देखने को मिलती है।
शायद सिर्फ इस बात पर डायरेक्टर को एक-दो नेशनल अवॉर्ड मिल जाएं!
डायलॉग्स जो पॉलिटिकल एजेंडा साफ कर देते हैं:
"पहले सरकार इंडिया की थी, अब भारत की है।"
"यूपी सबसे सुरक्षित प्रदेश है। किसकी हिम्मत है जो यहां दंगा करे?"
इतने सीन्स हैं कि आप आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि डायरेक्टर साहब किसे वोट देते हैं।
उदयपुर फाइल्स मूवी रिव्यू: बॉलीवुड में बहुत कम ऐसी फिल्में बनती हैं जो किसी सच्ची घटना पर इतनी ईमानदारी से रोशनी डालती हैं। विवेक अग्निहोत्री की 'द कश्मीर फाइल्स' के बाद, अब निर्देशक प्रद्युमन सिंह ने 'उदयपुर फाइल्स' के साथ एक और दिल दहला देने वाली कहानी बड़े पर्दे पर पेश की है। यह फ़िल्म राजस्थान के उदयपुर में हुए कन्हैया लाल हत्याकांड पर आधारित है। यह सिर्फ़ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक दर्दनाक कहानी है जो हमें कई अनसुनी सच्चाइयों से रूबरू कराती है।
अगर आप फ़िल्म देखने की सोच रहे हैं तो यह Udaipur Files Movie Review आपको फ़ैसला लेने में मदद करेगा।
कहानी और प्लॉट (बिना स्पॉइलर)
फ़िल्म की कहानी कन्हैया लाल की सच्ची घटना से शुरू होती है। यह दिखाती है कि कैसे एक सामान्य दर्जी को सिर्फ एक सोशल मीडिया पोस्ट के लिए धमकियाँ मिलने लगती हैं और किस तरह सिस्टम की अनदेखी उसे अकेला छोड़ देती है। फ़िल्म में यह भी दिखाया गया है कि कैसे कुछ कट्टरपंथी संगठन इस तरह के अपराधों को अंजाम देते हैं। यह कहानी दर्शकों को उस पूरे घटनाक्रम के भावनात्मक सफ़र पर ले जाती है, जो शायद मीडिया में पूरी तरह सामने नहीं आ पाया।
एक्टिंग और परफ़ॉर्मेंस
इस फ़िल्म की सबसे ख़ास बात इसकी दमदार एक्टिंग है। कन्हैया लाल का किरदार निभाने वाले अभिनेता ने अपनी भूमिका को बेहतरीन तरीके से निभाया है। उनका दर्द, डर और बेबसी स्क्रीन पर साफ़ नज़र आती है, जो दर्शकों के दिल को छू लेती है। सपोर्टिंग रोल में सभी कलाकारों ने भी अच्छा काम किया है। इस फ़िल्म के किरदार हमें यह एहसास दिलाते हैं कि यह सिर्फ़ एक कहानी नहीं, बल्कि एक असली घटना है।
डायरेक्शन और स्क्रीनप्ले
प्रद्युमन सिंह का निर्देशन काबिल-ए-तारीफ़ है। उन्होंने एक संवेदनशील विषय को बहुत ही सावधानी और सच्चाई से दिखाया है। फ़िल्म का स्क्रीनप्ले भी बहुत मज़बूत है और यह कहानी को बिना भटकाए दर्शकों को अंत तक बांधे रखता है। यह फ़िल्म ज़्यादा फ़िल्मी नहीं लगती, बल्कि एक डॉक्यूमेंट्री की तरह महसूस होती है, जो इसकी सबसे बड़ी खूबी है।
म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर
फ़िल्म का बैकग्राउंड स्कोर कहानी के साथ बिल्कुल फिट बैठता है। यह बिना ज़्यादा लाउड हुए कहानी के माहौल को और भी गंभीर बना देता है। फ़िल्म में गाने नहीं हैं, जो कि इस तरह के विषय के लिए बिल्कुल सही है। बैकग्राउंड स्कोर फ़िल्म के भाव को और गहरा करता है।
सिनेमेटोग्राफी
फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है। उदयपुर के दृश्यों को खूबसूरती से दिखाया गया है। फ़िल्म के कैमरे ने कन्हैया लाल के दर्द और परिवार के संघर्ष को सही तरीक़े से कैप्चर किया है। यह फ़िल्म कम बजट की होने के बावजूद सिनेमेटोग्राफी के मामले में निराश नहीं करती।
हमारा फ़ैसला
'उदयपुर फाइल्स' एक बहुत ही महत्वपूर्ण फ़िल्म है जिसे हर भारतीय को देखना चाहिए। यह हमें एक ऐसी घटना की याद दिलाती है जो हमारे समाज की कड़वी सच्चाई को उजागर करती है। यह सिर्फ़ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक चेतावनी है। फ़िल्म देखने के बाद आप भावुक हो सकते हैं, लेकिन यह आपको कुछ ज़रूरी सवालों के जवाब ज़रूर देगी।
हमारी तरफ़ से इस फ़िल्म को 4.5/5 की रेटिंग मिलती है। यह फ़िल्म हिम्मत और सच्चाई के लिए एक बेहतरीन प्रयास है।
फाइनल वर्डिक्ट: क्या देखें या छोड़ दें?
उदयपुर फाइल्स एक बिखरी हुई, पॉलिटिकली लोडेड, सस्ती फिल्म है
जो एक गंभीर मुद्दे को भी ओवरएक्टिंग और एजेंडा में डुबो देती है।
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी कमजोर है
स्क्रिप्ट अधूरी है
मैसेज उलझा हुआ है
पर पाकिस्तान और हाफिज सईद का सीन? वो एक क्रेजी मास्टरस्ट्रोक है।
अब आपकी बारी — आप इस फिल्म को कितने स्टार्स देंगे?
अगर आपने "उदयपुर फाइल्स" देखी है,
तो नीचे कमेंट में बताइए:
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