Ad Code

Maidaan Full Movie 1080p Clear print, Ajay Devgn

Maidaan Full Movie:Ajay Devgn,Priyamani Hindi Review & Watch

Movie: Maidaan

Maidaan Poster full movie download

Information:

  • Director:  Amit Ravindernath Sharma
  • Release Date: April 10, 2024
  • Genre: Biography, Drama
  • Runtime: 3 hours 1 minute
  • IMDB Rating: 8.9 
  • Plot:

    2019 में एक फिल्म बननी शुरू हुई, जो एक स्पोर्ट्स बायोपिक थी। यह फिल्म देश में सबसे कम देखे जाने वाले खेल फुटबॉल के बारे में बात करती है। कहानी उस आदमी की है जिसने इंडिया की नेशनल फुटबॉल टीम को कोचिंग दी। उसकी ट्रेनिंग में टीम ने दुनिया भर में डंका बजाया, ओलंपिक से लेकर एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीते। इसलिए 1950 से लेकर 1960 वाले दौर को भारतीय फुटबॉल इतिहास का गोल्डन पीरियड कहा जाता है। उस करिश्माई शख्सियत का नाम था सैयद अब्दुल रहीम और उनके ऊपर बनी फिल्म का नाम है। मैदान,

    जो कि पांच सालों तक मेकिंग में रहने के बाद फाइनली सिनेमाघरों में उतरी है, अपने बेसिक्स क्लियर हो गए। अब अपन पिक्चर पर बात करते हैं। मैदान देखने के दौरान मुझे दो चीजों ने सबसे पहले स्ट्राइक किया। पहली चीज, यह फिल्म किस बारे में है, और दूसरी चीज, यह फिल्म किसके बारे में है। एक ऐसा खेल और एक ऐसा समुदाय जो भारत में हास्य पर है। आप उन दोनों को उठाते हैं और एक पिक्चर बना देते हैं। यहां यह तर्क कमजोर पड़ जाता है कि आपने क्या और कैसा बनाया हालांकि मैदान में कहीं भी उस समुदाय विशेष की सामाजिक स्थिति पर बात नहीं की गई है जो कि आगे चलकर खलती है।  

    मगर तब तक आप सोशल पॉलिटिक्स से निकलकर सैयद अब्दुल रहीम के साथ हो रही पर्सनल पॉलिटिक्स पर पहुंच चुके होते हैं। इसमें कहीं भी उनका धर्म आड़े नहीं आता, मगर हमारे साथ एक मसला है। वो ये कि अगर हम धर्म के नाम पर लड़ाई नहीं करेंगे तो जाति के नाम पर लड़ेंगे। अगर जाति वाली लड़ाई खत्म कम हो जाएगी तो क्षेत्रवाद शुरू हो जाएगा। मैदान की लड़ाई इसी क्षेत्रवाद से है, यानी रीजनलिज्म। अब कॉन्फ्लेट यह है कि फुटबॉल तो कोलकाता में सबसे ज्यादा खेला और देखा जाता है। इसलिए वहीं से अच्छे खिलाड़ी निकलते हैं। इसलिए उन्हें ही नेशनल टीम में जगह मिलने चाहिए।

    मगर रहीम की सोच इससे अलग थी। वह देश के कोने कोने से अच्छे खिलाड़ियों को जमा करके एक वर्ल्ड क्लास फुटबॉल टीम बनाना चाहते थे, जो इंटरनेशनल टूर्नामेंट में भारत को मेडल्स दिलाए। यह बात फुटबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया के सदस्य शुभंकर को खल जाती है। अब यहां से शुभंकर रहीम को दरकिनार करने की कोशिशों में लग जाते हैं। इसमें उनकी मदद करते हैं रॉय चौधरी, वह देश के सबसे बड़े मानने हुए स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट हैं। इनकी रहीम से दुश्मनी इसलिए है क्योंकि एक मौके पर रहीम इनकी भी अना को ठेस पहुंचा चुके हैं। अब यहां से दो चीजें होती हैं जो आपको फिल्म में देखने को मिलती हैं। रहीम कैसे भारतीय फुटबॉल टीम के कोच पद से हटाए जाते हैं, और कैसे वापस आकर वह भारत को टॉप पर पहुंचाते हैं। यह सब एकदम सिनेमेटिक और से भरपूर तरीकों से होता है।

    मैदान सिनेमा के तौर पर आपको एक्सपीरियंस के अलावा कुछ भी नया नहीं देती, प्रॉपर टेंप्लेट सिनेमा। मगर मैं डायरेक्टर अमित शर्मा को इसका फुल क्रेडिट दूंगा कि उन्होंने अपनी तरफ से इस फिल्म को मास्टर पीस बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। उन्होंने इस फिल्म को बनाने में अपना सब कुछ झोक दिया है। एक तरह से देखें तो यह उनकी बाहुबली है और हमें ये चीज एक्नॉलेज करनी चाहिए। 2018 में अमित शर्मा की बधाई हो रिलीज हुई कोई भी और फिल्म मेकर होता तो उस सफलता को बुलाने की कोशिश करता। वह कमर्शियल गुण वाले प्रोजेक्ट चुनता, मगर अमित ने चुनी एक स्पोर्ट्स बायोपिक, एक ऐसा जनरो जिसकी गिनी चुनी फिल्में हमारे यहां चली हैं। मुझे चकदे और एम एस धोनी द अनटोल्ड स्टोरी के अलावा कोई नाम नहीं ध्यान आता। मगर उन्होंने फिर भी वह कहानी कहने के लिए चुनी जो उन्हें कंपेन लगी और उसे बनाने में उन्होंने अपने करियर के पीक पर 5 साल खर्च कर दिए।

    2019 से 2024 के बीच मैदान के अलावा अमित ने सिर्फ लव स्टोरीज टू नाम की एंथोलॉजिस्ट किया है। मैदान की कहानी सबको पता थी, क्योंकि एक रियल आदमी से इंस्पायर्ड फिल्म है। सारा खेल ये था कि उस कहानी को बरता कैसे जाता है। इस फिल्म की राइटिंग यानी स्टोरी स्क्रीन पले और डायलॉग को मिलाकर कुल आठ लोगों ने काम किया। मगर ये इतनी मॉडेस्ट फिल्म है कि आपको कहीं भी इसका भान नहीं होता। क्योंकि लेखन में आपको ताजगी महसूस नहीं होती। आप जब तक दर्शक को चौका जाएंगे नहीं, आप उनका भरोसा नहीं जीत पाएंगे। मैदान ये नहीं कर पाती। आप कमश हर जरूरी सीन में गेस कर लेते हैं कि क्या होने वाला है। इसमें कोई दिक्कत नहीं है, मगर जब आप यह गेस कर लेते हैं कि को सीन कैसे होने वाला है, यहां खराब लगता है। फिल्म के विजुअल्स राइटिंग की गलतियों को ढकने की कोशिश करते हैं। फिल्म का नहीं देखा है बहरहाल, मैदान की एक और बड़ी खामी यह है कि फिल्म की लंबाई तीन घंटे है। फर्स्ट हाफ सेटप में निकलता है जिसकी छटाई बड़े आराम से हो सकती थी, मगर सेकंड हाफ तेज रफ्तार में टता है क्योंकि अधिकतर मैच वाले सींस और सीक्वेंस जो है वो इसी हिस्से में आए हैं। ए आर रहमान बहुत बड़े संगीतकार हैं, कहना नहीं चाहिए। मगर इस फिल्म में उनका बनाया बैकग्राउंड स्कोर फिल्म की सबसे इरिटेटिंग चीज है। 

    हालांकि, ठीक क्लाइमैक्स में वो इस चीज की भरपाई कर देते हैं। मैदान का आखिरी आधा घंटा जो है वो पिछले ढाई घंटे पर भारी पड़ता है। अब एक्टर्स के परफॉर्मेंस की बात कर लेते हैं, मैदान में अजय दवगन ने सैयद अब्दुल रहीम का रोल किया है। अजय इस फिल्म की आत्मा है, वह पूरी फिल्म में संयमित नजर आते हैं। वेरी कंट्रोल्ड ऐसे रिस्ट्रेंट वम जिसको कहते हैं व है मगर वो टिपिकल हीरो कैरेक्टर है। क्योंकि फिल्म को अजय के अलावा कोई और दिखाई ही नहीं देता। यहीं पर मैं चकदे के साथ इस फिल्म की तुलना करना चाहूंगा। सीमित अमीन ने जो चीजें अपने हीरो और टीम के साथ की वह शायद अमीर शर्मा नहीं कर पाए। सदे में आपको कबीर खान के साथ उसकी टीम के खिलाड़ियों के बारे में बताया जाता है, उनके आपसी समीकरण फिल्म का एक बड़ा शंख तैयार करते हैं। कबीर का धर्म फिल्म की धुरी थी, मगर मैदान से वो चीजें नदारद हैं। हालांकि मैं यह नहीं कहूंगा कि आपको उसकी कमी खलती है।

    गजराज राव ने रॉय चौधरी नाम के स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट का रोल किया है। इस किरदार की लिखावट बहुत टॉप है। वह एक समय पर फिल्म का मेन विलन होता है, मगर फिर वही लास्ट में हृदय परिवर्तन वाला घिसा हुआ मटेरियल आ जाता है। गजराज राव जैसा एक्टर था जो उस किरदार को बचा ले गया। इसलिए एक एक्टर के तौर पर पब्लिक में आपकी गुडल होनी जरूरी है। रुद्र नील घोष ने फुटबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया के सदस्य और भावी चेयरमैन पढ़े। चेयरमैन शुभंकर का रोल किया है। उन्हें उम्मीद से ज्यादा स्क्रीन स्पेस मिला है और उनका काम भी ठीक है। अमित शर्मा मैदान को जो बनाना चाहते थे, शायद वह यह फिल्म नहीं है। मगर मैदान वो फिल्म भी नहीं है जिसे बिना देखे खारिज कर दिया जाए। जीवन में कुछ चीजों में आपको अपना बेस्ट देकर छोड़ देना चाहिए, उसे किसी नतीजे से नहीं जोड़ना चाहिए।

    Maiddaan full movie : CLICK HERE

    बाकी खूबी और खामी चीजों में नहीं नजर में होती है। इसलिए सिनेमा घरों में जाकर मैदान देखनी चाहिए और खुद के लिए फैसला लेना चाहिए। यह हमारा मानना था। आपको जो लगता है। 

Post a Comment

0 Comments